लुप्तप्राय जनजाति 'असुर' || Endangered Tribe Asur
लुप्तप्राय जनजाति 'असुर'
असुर भारत में रहने वाली एक प्राचीन आदिवासी समुदाय है। असुर जनसंख्या का घनत्व मुख्यतः झारखण्ड और आंशिक रूप से पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में है। झारखंड में असुर मुख्य रूप से गुमला, लोहरदगा, पलामू और लातेहार जिलों में निवास करते हैं। असुर जनजाति के तीन उपवर्ग हैं- बीर असुर, विरजिया असुर एवं अगरिया असुर। बीर उपजाति के विभिन्न नाम हैं, जैसे सोल्का, युथरा, कोल, इत्यादि। असुर जाति के लोग स्वयं को महिषासुर का वंशज मानते हैं। इतिहासकारों के अनुसार महाभारत काल में झारखण्ड मगध के अंतर्गत आता था और ये बाहुबलि जरासंध के आधिपत्य में था। अनुमान किया जाता है कि जरासंध के वंशजों ने लगभग एक हज़ार वर्ष तक मगध में एकछत्र शासन किया था। जरासंध शैव था और असुर उसकी जाति थी। झारखण्ड में रहने वाले वर्तमान असुर महाभारत कालीन असुरों के ही वंशज हैं।
इतिहास:
सामाजिक व्यवस्था:
असुर समाज 12 गोत्रों में बँटा हुआ है। असुर के गोत्र विभिन्न प्रकार के जानवर, पक्षी एवं अनाज के नाम पर है। गोत्र के बाद परिवार सबसे प्रमुख होता है। पिता परिवार का मुखिया होता है। असुर समाज असुर पंचायत से शासित होता है। असुर पंचायत के अधिकारी महतो, बैगा, पुजार होते हैं।
विवाह:
व्यवसाय:
भाषा एवं साहित्य
आदिम जनजाति असुर की भाषा मुण्डारी वर्ग की है जो आस्ट्रो एशियाटिक भाषा परिवार से सम्बद्ध है। परन्तु असुर जनजाति ने अपनी भाषा की असुरी भाषा की संज्ञा दिया है। अपनी भाषा के अलावे ये नागपुरी भाषा तथा हिन्दी का भी प्रयोग करते हैं।
हाल ही में, झारखंड की असुर जनजाति असुरी भाषा को पुनर्जीवित करने के प्रयासों की वजह से चर्चा में रही। वर्तमान में सिर्फ 7000-8000 असुर लोग ही इस भाषा को बोलते हैं। भाषा को पुनर्जीवित करने के लिये ये लोग स्थानीय समाचारों को मोबाइल रेडियो के माध्यम से असुरी भाषा में ही प्रसारित कर रहे हैं। ध्यातव्य है कि असुरी भाषा यूनेस्को की एटलस ऑफ द वर्ल्ड्स लैंग्वेजेज़ इन डेंजर की सूची में शामिल है।
- गृह मंत्रालय द्वारा असुर जनजाति को विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (Particularly Vulnerable Tribal Groups-PVTGs) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। वस्तुतः पीवीटीजी निम्न विकास सूचकांक वाले जनजातीय समुदाय होते हैं।
- यूनेस्को की एटलस ऑफ द वर्ल्ड्स लैंग्वेजेज़ इन डेंजर, विश्व भर में भाषाई विविधता को सुरक्षित रखने, लुप्तप्राय भाषाओं की निगरानी एवं उन्हें पुनर्जीवित करने के लिये एक वैश्विक प्रयास है।
धर्म और पर्व-त्यौहार:
दशहरे पर शोक मनाना:
झारखण्ड के गुमला ज़िले के सुदूरवर्ती पठारी क्षेत्र में जंगलों व पहाड़ की तराईयों में रहने वाले असुर जाति के लोग दशहरे के अवसर पर शोक मनाते हैं। नवरात्र और विजयादशमी के अवसर पर जब पूरा देश हर्ष व उल्लास में डूबा रहता है, तब झारखण्ड के जंगल व पहाड़ों से अटूट रिश्ता बनाकर बसने वाले असुर जाति के लोग अपने आराध्य देव महिषासुर के वध से दुखी होकर शोक मनाते हैं। इस दिन वे न तो एक दूसरे के घर मेहमाननवाजी करते हैं और न ही नये वस्त्र पहनते हैं। वे इस दिन महिषासुर के शोक में विशेष पकवान भी नहीं बनाते हैं। अपने आराध्य देव की दुर्गा के द्वारा वध किये जाने पर वे अपने को बेसहारा महसूस करते हैं। इस जाति के कुछ युवक जो उच्च शिक्षा प्राप्त कर शहरों की ओर रुख़कर रहें हैं, वे बाहरी लोंगों के संपर्क में आकर अपनी परम्परा को भूलने लगे हैं, लेकिन गाँवों में रहने वाले असुर आज भी अपनी पूर्वजों की परंपरा को संजो कर रखना अपना धर्म मानते हैं।
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